5 Essential Elements For Shodashi
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The murti, which is also found by devotees as ‘Maa Kali’ presides more than the temple, and stands in its sanctum sanctorum. Here, she is worshipped in her incarnation as ‘Shoroshi’, a derivation of Shodashi.
सर्वाशा-परि-पूरके परि-लसद्-देव्या पुरेश्या युतं
The Mahavidya Shodashi Mantra aids in meditation, enhancing inner tranquil and focus. Chanting this mantra fosters a deep feeling of tranquility, enabling devotees to enter a meditative condition and connect with their inner selves. This benefit enhances spiritual consciousness and mindfulness.
ह्रींमन्त्रान्तैस्त्रिकूटैः स्थिरतरमतिभिर्धार्यमाणां ज्वलन्तीं
Upon walking in direction of her historical sanctum and approaching Shodashi as Kamakshi Devi, her electrical power raises in intensity. Her templed is entered by descending down a dim slim staircase by using a group of other pilgrims into her cave-llike abode. There are lots of uneven and irregular measures. The subterranean vault is hot and humid and still There's a sensation of security and and safety within the dim light.
यत्र श्री-पुर-वासिनी विजयते श्री-सर्व-सौभाग्यदे
यह शक्ति वास्तव में त्रिशक्ति स्वरूपा है। षोडशी त्रिपुर सुन्दरी साधना कितनी महान साधना है। इसके बारे में ‘वामकेश्वर तंत्र’ में लिखा है जो व्यक्ति यह साधना जिस मनोभाव से करता है, उसका वह मनोभाव पूर्ण होता है। काम की इच्छा रखने वाला व्यक्ति पूर्ण शक्ति प्राप्त करता है, धन की इच्छा रखने वाला पूर्ण धन प्राप्त करता है, विद्या की इच्छा रखने वाला विद्या प्राप्त करता है, यश की इच्छा रखने वाला यश प्राप्त करता है, पुत्र की इच्छा रखने click here वाला पुत्र प्राप्त करता है, कन्या श्रेष्ठ पति को प्राप्त करती है, इसकी साधना से मूर्ख भी ज्ञान प्राप्त करता है, हीन भी गति प्राप्त करता है।
सा नित्यं नादरूपा त्रिभुवनजननी मोदमाविष्करोतु ॥२॥
The iconography serves as a focal point for meditation and worship, enabling devotees to attach with the divine Power with the Goddess.
वृत्तत्रयं च धरणी सदनत्रयं च श्री चक्रमेत दुदितं पर देवताया: ।।
यत्र श्रीत्रिपुर-मालिनी विजयते नित्यं निगर्भा स्तुता
वन्दे तामष्टवर्गोत्थमहासिद्ध्यादिकेश्वरीम् ॥११॥
देवीं कुलकलोल्लोलप्रोल्लसन्तीं शिवां पराम् ॥१०॥
स्थेमानं प्रापयन्ती निजगुणविभवैः सर्वथा व्याप्य विश्वम् ।